The Kashmir Files (2022) Hindi Full Movie 480p || The Kashmir files movie review || movie download without ads
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कहानी:
विवेक अग्निहोत्री की नई फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है. ये फिल्म 1990 के दौर के एक बहुत बड़े मसले पर बनी है. जब आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों की हत्याएं की गईं, और उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया गया. ये एक mass exodus था जिसने कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने पर मजबूर कर दिया. उनका वो स्टेटस आज भी बना हुआ है.
‘द कश्मीर फाइल्स’ का केंद्रीय पात्र कृष्णा पंडित नाम का लड़का है. उसके दादा पुष्कर नाथ को 1990 में कश्मीर छोड़ना पड़ा. आज भी उनका सपना है कि वो एक बार वापस अपने घर जा सकें. कृष्णा दिल्ली में ENU नाम के टॉप कॉलेज में पढ़ता है. वो कॉलेज इलेक्शन में खड़ा होता है. आगे का लब्बोलुबाब ये है कि कृष्णा कही-सुनी बातों पर विश्वास करने की बजाय खुद कश्मीर जाकर देखता है कि वहां क्या चल रहा है. इस दौरान उसे अपनी लाइफ का सबसे बड़ा राज़ पता चलता है, जो जीवन और कश्मीर के प्रति उसका पर्सपेक्टिव बदल देता है.
फिल्म में अनुपम खेर ने पुष्कर नाथ नाम के कश्मीरी पंडित का किरदार निभाया है, जो उस बर्बर एक्सोडस का शिकार हुआ था. ये कैरेक्टर उनके काफी करीब लगता है. वे खुद एक कश्मीरी पंडित हैं. और इमोशनल्स सीन्स में कश्मीरी भाषा में बात करते हैं, जो उनके कैरेक्टर को ऑथेंटिक बनाने में मदद करता है. उनके पोते कृष्णा के रोल में दर्शन कुमार हैं. फिल्म के कुछ सीक्वेंस में दर्शन कॉलेज स्टूडेंट बने दिखाई देते हैं. हालांकि वे कन्विंसिंग तरीके से कॉलेज स्टूडेंट नहीं लगते. फिल्म के क्लाइमैक्स में उनके हिस्से एक लंबी-चौड़ी स्पीच आती है. जिसमें वो ठीक लगते हैं. पल्लवी जोशी ने राधिका मेनन नाम की ENU प्रोफेसर का रोल किया है. ईएनयू जेएनयू से मिलता जुलता नाम है. एक सीन में राधिका मेनन का किरदार, कृष्णा को सलाह देते हुए कहता है कि हर कहानी में एक विलेन होता है. इस कहानी में विलेन राधिका मेनन को बनाया गया है. यहां पर ये डायरेक्टर का पॉइंट ऑफ व्यू या आइडियोलॉजी हो जाती है. क्योंकि वो विचारधारा के आधार पर अगर किसी को विलेन पोट्रे करता है तो ये काम तो किसी भी विषय़ में किया जा सकता है.
ये तो हो गए फ़िल्म के तीन प्राइमरी कैरेक्टर्स. इनके अलावा फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, प्रकाश बेलवाड़ी, पुनीत इस्सर और अतुल श्रीवास्तव भी हैं. उन्होंने पुष्कर नाथ के चार दोस्तों का रोल किया हैं. इन चार दोस्तों का काम है वो कृष्णा को बताएं कि उसके माता-पिता के साथ असल में क्या हुआ था. मतलब उनकी डेथ कैसे हुई.
द कश्मीर फाइल्स’ की अच्छी चीज़ ये है कि वो अपने नैरेटिव को लेकर बहुत पैशनेट है, लेकिन ऐसा करते हुए क्राफ्ट पर उसका खास ध्यान नहीं रहता. यानी सिनेमाई तौर पर आप फ़िल्म में कोई एक्सपेरिमेंट नहीं पाते. स्क्रीनप्ले की गुंथाई जबरदस्त नहीं है. आप ट्रीटमेंट के स्तर पर इसे बहुत यूनीक फ़िल्म नहीं कह सकते. वो बेसिक सिनेमा टूल्स का इस्तेमाल करती है अपनी बातों का असर छोड़ने के लिए. मसलन फिल्म में एक सीन है जिसमें 25 लोगों को गोली मारी जाती है. ये 25 की 25 गोली चलते हमें स्क्रीन पर दिखाई जाती है. ताकि दर्शक चाहकर भी इसे भूल न सके.
कश्मीर फाइल्स ने कश्मीरी पंडितों के जरूरी मानवीय मुद्दे को पूरे जुनून से बड़े परदे पर उकेरा है. लेकिन फ़िल्म ग्रे में जाकर चीजों को टटोलने की कोशिश नहीं करती. यहां सबकुछ ब्लैक या वाइट में ही रखा गया. कॉलेज प्रोफेसर का किरदार हो या कश्मीर के तकरीबन सारे मुसलमान सबको इसमें विलेन की माफिक ही दिखाया गया है. ये तथ्यात्मक कितना है और विचारात्मक कितना है, ये टटोलने की कोशिश दर्शक को करनी है.
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